लोकसभा चुनाव 2024 कुछ काम नहीं आया, 15 साल पीछे के आंकड़े पर आ गए हम।

देहरादून- चुनाव आयोग के 75 फीसदी मतदान लक्ष्य से इस बार मत प्रतिशत कहीं पीछे रह गया।

मतप्रतिशत बढ़ाने को शपथ, टिप, सोशल मीडिया, जागरूकता जैसी कवायदें की गई, उसके बावजूद राज्य 15 साल पीछे चला गया।

चुनाव आयोग का राज्य में 75 प्रतिशत मतदान का लक्ष्य रखकर जितनी भी कवायद कीं, उसके बावजूद राज्य 15 साल पीछे चला गया। सोशल मीडिया से लेकर हर बूथ तक पहुंच, शपथ से लेकर कम वोट प्रतिशत वाले बूथों पर विशेष कोशिशें करने के बाद भी मतदान का आंकड़ा 53 प्रतिशत पर अटक गया। अब सर्विस मतदाता, दिव्यांग, बुजुर्ग, कर्मचारियों के मतदान को मिलाकर खुद चुनाव आयोग इस आंकड़े के 55 से 56 प्रतिशत तक रहने का अनुमान जता रहा है।

कवायदें, जो हो गईं नाकाम

60 लाख से अधिक को शपथ : चुनाव आयोग की पूरी टीम ने प्रदेशभर में स्वीप की मदद से विभिन्न गतिविधियां आयोजित कीं। दावा किया कि 60 लाख लोगों को मतदान की शपथ दिलाई गई, लेकिन नतीजा ये रहा कि 83 लाख में से करीब 42 से 43 लाख ही अपना वोट डालने आए।

टिप कमेटियां

चुनाव आयोग ने हर गांव के हर बूथ तक पहुंच बनाने के लिए टर्नआउट इंप्लीमेंटेशन प्लान कमेटी गठित की। राज्य स्तर के अलावा हर जिले में मुख्य विकास अधिकारी को इसका नोडल बनाया गया। उन्हें जिम्मेदारी दी गई कि वह सहकारी समितियों व अन्य के माध्यम से हर बूथ तक मतदाताओं को जागरूक करें, ताकि वह मतदान को बाहर आएं। नतीजा निराशाजनक रहा।

सोशल मीडिया

सोशल मीडिया में चुनाव आयोग ने विशेष प्रयास किए। युवाओं को जागरूक करने के लिए इंस्टाग्राम पर रील की प्रतियोगिता, फेसबुक पर सवालों की क्विज समेत तमाम कवायदें की गईं। ब्रांड एंबेसडर से भी अपील करवाई गई और सोशल मीडिया से मतदाताओं तक भेजी गई। इसका भी असर नजर नहीं आया।

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कम वोटिंग बूथों पर अधिक फोकस

चुनाव आयोग ने कम वोटिंग वाले बूथों को खासतौर से चिह्नित किया। यहां मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए खुद आयोग के अधिकारी भी मैदान में उतरे। लोगों से मतदान की अपील की लेकिन वह बेअसर रही

चुनाव आयोग ये मान रहा कारण

अपर मुख्य निर्वाचन अधिकारी विजय कुमार जोगदंडे का कहना है कि वैसे तो कम मतदान के कई कारण हो सकते हैं। शादी-विवाह अधिक थे। मैदानी जिलों में गर्मी भी ज्यादा थी। उन्होंने कहा, अब रिपोर्ट आने के बाद ही इस मुख्य कारणों की तस्वीर साफ हो सकेगी। ये भी बताया जा रहा कि इस बार राजनीतिक दल भी चुनाव को लेकर उस तरह का माहौल नहीं बना पाए, जिससे आम मतदाताओं की सहभागिता कम हो गई।

2009 के बाद सबसे कम मतदान

राज्य में 2004 में 49.25 प्रतिशत, 2009 में 53.96 प्रतिशत मतदान हुआ था। इसके बाद 2014 में मतदान प्रतिशत बढ़कर 62.15 प्रतिशत पर पहुंच गया। फिर 2019 में यह आंकड़ा गिरकर 61.50 प्रतिशत पर आया। इस बार यह आंकड़ा 2009 के बराबर यानी 53.75 प्रतिशत तक आ गया है, जिसमें एक से दो प्रतिशत की ही बढ़ोतरी संभावित है।

हमने जिस हिसाब से मेहनत की थी, उसका बेहतर नतीजा सामने आया है। मुझे लगता है कि पोस्टल बैलेट आदि को जोड़कर हम 57 से 58 प्रतिशत तक पहुंच जाएंगे। अभी कम मतदान के बारे में कुछ कहना जल्दबाजी होगा। विश्लेषण के बाद ही इसके कुछ कारण स्पष्ट हो सकते हैं।

डॉ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम, मुख्य चुनाव अधिकारी, उत्तराखंड

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