भारत-पाक विभाजन के दौरान यहां बसाए गए थे तीन हजार परिवार, आज तक नहीं मिला मालिकाना हक, अब जगी आस।

देहरादून- अब यह क्षेत्र कैंट से नगर निगम में शामिल हो रहा है। ऐसे में अब यहां के लोगों को उम्मीद जग गई कि उन्हें मालिकाना हक मिलेगा।

प्रेमनगर क्षेत्र के करीब तीन हजार परिवार लोग इधर से उधर दौड़ लगा रहे हैं, पर भारत-पाक विभाजन के बाद से अब तक उनकी समस्या का हल नहीं हो पाया। उनकी समस्या है जमीनों की रजिस्ट्री न होना और उन्हें मालिकाना हक न मिलना। कैंट के साथ ही हर विधानसभा व लोक सभा के चुनाव में यह मुद्दा प्रमुखता से उठता है, लेकिन आज तक इस और किसी का ध्यान नहीं गया।

अब यह क्षेत्र कैंट से नगर निगम में शामिल हो रहा है। ऐसे में अब यहां के लोगों को उम्मीद जग गई कि उन्हें मालिकाना हक मिलेगा। दरअसल, भारत-पाक विभाजन के दौरान पाकिस्तान से आए लोगों को प्रेमनगर में पुनर्वास विभाग की ओर से जमीन उपलब्ध कराई थी। यहां जमीनों की रजिस्ट्री का जिम्मा जिलाधिकारियों को दिया गया था। 1988 में यहां जमीनों की रजिस्ट्री पर रोक लगा दी गई।

1947 में यहां ब्रिटिश सेना के बैरकों के साथ अन्य खाली जमीन पड़ी थी। यहीं पर सिख परिवारों को बसाया गया। इसके बाद बने पुनर्वास विभाग ने जो जहां बैठा था, पैमाइश कर वहां की जमीन उनके नाम कर दी। लेकिन, 1988 में यहां जमीनों की रजिस्ट्री पर रोक लगा दी गई।

प्रेमनगर क्षेत्र के बुजुर्ग हुकुम सिंह, गुरुभेज सिंह, इंद्र सिंह ने बताया कि उसके बाद से लेकर आज कई कोशिशें हुईं लेकिन अब तक यहां रजिस्ट्री की प्रक्रिया आरंभ नहीं हो पाई। चूंकि, अब कैंट के सिविल क्षेत्रों को नगर निगम में शामिल किया जा रहा है तो प्रेमनगर का क्षेत्र भी नगर निगम में शामिल होगा। ऐसे में अब यहां के लोगों को उम्मीद है कि उन्हें आवंटित जमीनों पर मालिकाना हक दिया जाएगा। हालांकि, नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही कार्रवाई को आगे बढ़ाया जाएगा।

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प्रेमनगर का क्षेत्र यदि निगम में शामिल होता है तो यहां के लोगों के पूरे दस्तावेज देखकर ही कोई निर्णय लिया जाएगा। उनके पास पूर्व में आवंटित जमीन के प्रमाण देखे जाएंगे। अगर प्रमाण हैं तो इसको बोर्ड बैठक में रखकर और शासन में भेजा जाएगा।

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