सिलक्यारा में सुरंग में फंसे श्रमिकों के बाहर आने का बढ़ा इंतजार, अभी 13 से 14 मीटर दूर हैं सुरंग में फंसे श्रमिक।
उत्तरकाशी- उत्तरकाशी के सिलक्यारा में निर्माणाधीन सुरंग में 12 दिन से फंसे आठ राज्यों के 41 श्रमिकों के बाहर आने का इंतजार बढ़ गया है। श्रमिकों की जिंदगी बचाने का अभियान अंतिम पड़ाव पर ड्रिलिंग में बाधा आने से गुरुवार को धीमा पड़ गया।
पिछले 24 घंटे में राहत एवं बचाव दल को चार बड़ी बाधाओं से जूझना पड़ा, जिस कारण सिलक्यारा की तरफ से स्टील के पाइपों से बनाई जा रही निकास सुरंग में गुरुवार को महज 1.8 मीटर ड्रिलिंग ही हो पाई। अब तक सुरंग में कैद श्रमिकों को निकालने के लिए लगभग 60 मीटर में से 46.8 मीटर निकास सुरंग तैयार हो चुकी है।
श्रमिकों तक पहुंचने के लिए अभी 13 से 14 मीटर ड्रिलिंग की जानी बाकी है। ड्रिलिंग को पटरी पर लाने के लिए तमाम मोर्चों पर काम किया जा रहा है। रात तक अभियान को सुचारू करने के प्रयास जारी थे। अब शुक्रवार को अभियान के संपन्न होने की उम्मीद की जा रही है।
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 50 किमी दूर यमुनोत्री राजमार्ग पर सिलक्यारा में चारधाम आलवेदर रोड परियोजना की निर्माणाधीन 4.5 किलोमीटर लंबी सुरंग में 12 नवंबर को सुबह करीब साढ़े पांच बजे भूस्खलन होने से 41 श्रमिक अंदर फंस गए थे। उसी दिन से श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की 12 से अधिक एजेंसियां राहत एवं बचाव कार्य में जुटी हैं। अभियान में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की मदद भी ली जा रही है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अभियान की निगरानी कर रहे हैं। लेकिन, लगातार सामने आ रही चुनौतियों के कारण 300 घंटों से अधिक समय से जारी बचाव अभियान के मंजिल तक पहुंचने का इंतजार बढ़ता जा रहा है। एक पल लगता है कि अभियान निर्णायक स्थिति तक पहुंच गया है, लेकिन दूसरे ही पल कोई बाधा खड़ी हो जाती है।
मंगलवार रात करीब पौने एक बजे जब औगर मशीन ने चार दिन बाद ड्रिलिंग शुरू की थी, तब लगा था कि बुधवार तक सुरंग में फंसे श्रमिकों को सकुशल निकाल लिया जाएगा। लेकिन, बुधवार मध्य रात्रि के करीब ड्रिलिंग के दौरान 45वें मीटर पर सरिया व धातु के टुकड़े आ जाने से पाइप आगे नहीं बढ़ पाया।
बचाव अभियान के नोडल अधिकारी डा. नीरज खैरवाल ने बताया कि सरिया और धातु के टुकड़े इतने मजबूत थे कि औगर मशीन से सुरंग में धकेले जा रहे 800 मिमी व्यास के मोटे पाइप को भेदकर भीतर घुस गए। इससे पाइप का अगला हिस्सा बुरी तरह मुड़ गया। साथ ही औगर मशीन का एक पुर्जा भी टूट गया। ऐसे में ड्रिलिंग रोकनी पड़ी। अभियान के 12वें दिन गुरुवार को भी राहत एवं बचाव दल बाधाओं से जूझता रहा।
हालांकि, ड्रिलिंग की राह में आए अवरोधों को गैस कटर से मैनुअली काटने का काम तत्काल शुरू कर दिया गया था। पांच घंटे के अथक प्रयास के बाद सरिया व धातु के टुकड़े को काट लिया गया और पाइप के मुड़े भाग को भी अलग कर दिया गया।
इस बीच दिल्ली से सिलक्यारा पहुंचे इंजीनियरों की टीम ने दूसरा पुर्जा लगाकर औगर मशीन भी दुरुस्त कर दी। जिसके बाद दोबारा ड्रिलिंग शुरू की गई, लेकिन 1.8 मीटर के बाद ही दूसरी बाधा खड़ी हो गई। निकास सुरंग तैयार करने के लिए पाइप पुशिंग को औगर मशीन पर दबाव अधिक पाया गया। स्थिति असामान्य होती देख दोपहर बाद ड्रिलिंग रोकनी पड़ी।
औगर मशीन के प्लेटफार्म में खराबी
नोडल अधिकारी डा. नीरज खैरवाल के अनुसार, गुरुवार को ड्रिलिंग के दौरान औगर मशीन में कंपन भी पाया गया। जांच में पता चला कि मशीन के संचालन के लिए बनाया गया प्लेटफार्म हिल रहा है। संभावना है कि ड्रिलिंग के दौरान कठोर धातु के टुकड़े आ जाने से जब मशीन पर अतिरिक्त दबाव पड़ा तो यह अपनी जगह से खिसक गई। फिलहाल, प्लेटफार्म की खामी को दूर करने का कार्य गतिमान है। देर रात तक प्लेटफार्म को दुरुस्त कर लिए जाने की संभावना है।
श्रमिकों तक पका भोजन व अन्य वस्तुएं पहुंचने से राहत
राहत एवं बचाव दलों के साथ ही सुरंग में फंसे श्रमिकों के स्वजन इस बात से राहत जरूर महसूस कर रहे हैं कि अब फंसे श्रमिकों तक पका भोजन पहुंचने लगा है। चिकित्सकों के परामर्श पर श्रमिकों को छह इंच के लाइफ लाइन पाइप के माध्यम से रोटी-सब्जी से लेकर उबले अंडे, दलिया, खिचड़ी आदि भेजी जा रही है। साथ ही उन तक कपड़े, साबुन, टूथ ब्रश और टूथ पेस्ट भी भेजे जा चुके हैं। सुरंग के भीतर संचार की व्यवस्था करने के बाद श्रमिकों से बात भी आसानी से हो पा रही है।